Detailed Notes on सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य

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पर कर्ण इन सबके बाद भी पाण्डव पक्ष में युद्ध करने से मना कर देता है, क्योंकि वह अपने आप को दुर्योधन का ऋणी समझता था और उसे ये वचन दे चुका था कि वह मरते दम तक दुर्योधन के पक्ष में ही युद्ध करेगा। वह कृष्ण को यह भी कहता है कि जब तक वे पाण्डवों के पक्ष में हैं जो कि सत्य के पक्ष में हैं, तब तक उसकी हार भी निश्चित है। तब कृष्ण कुछ उदास हो जाते हैं, लेकिन कर्ण की निष्ठा और मित्रता की प्रशंसा करते हैं और उसका यह निर्णय स्वीकार करते हैं और उसे ये वचन देते हैं कि उसकी मृत्यु तक वह उसकी वास्तविक पहचान गुप्त रखेंगे.

दुर्योधन के प्रति कर्ण के स्नेह के कारण, यद्यपि अनिच्छुक रूप से, उसने अपने प्रिय मित्र दुर्योधन के पाण्डवों के प्रति कर्ण ने स्वयं ना चाहते हुए भी दुर्योधन के कुकर्मों में उसका साथ दिया। कर्ण को पाण्डवों के प्रति दुर्योधन की दुर्भावनापूर्ण योजनाओं का ज्ञान था। उसे यह भी ज्ञान था की असत के लिए सत से टकराने के कारण उसका पतन भी निश्चित है। जबकि कुछ लोगों का यह मानना है कि कुरु राजसभा में द्रौपदी के लिए 'वैश्या' शब्द का उपयोग करके कर्ण ने अपने नाम पर स्वयं कालिख पोत ली थी। फिर भी, अभिमन्यु के मारे जाने में कर्ण की भूमिका और एक योद्धा से अनेक योद्धाओं के लड़ने के कारण उसके एक महायोद्धा होने की छवि को कहीं अधिक क्षति पहुँची और फिर उसी युद्ध में उसकी भी वही गति हुई। महाभारत की कुछ व्याख्यायों के अनुसार, यही वह कृत्य था जिसने भली प्रकार से ये प्रमाणित कर दिया की कर्ण युद्ध में अधर्म के पक्ष में लड़ रहा है और इस कृत्य के कारण उसके इस दुर्भाग्य का भी निर्धारण हो गया की वह भी अर्जुन द्वारा इसी प्रकार मारा जाएगा जब वह शस्त्रास्त्र कर्ण को आखिर में अर्जुन ने मार डाला कर्ण और अर्जुन के पिछले जन्म की कथा[संपादित करें]

जब कर्ण अर्जुन का युद्ध हुआ था तब कृष्ण व इंद्र दोनों ने अर्जुन की मदद की थी. युद्ध के समय कर्ण परशुराम द्वारा दी गई महान विद्या को याद करते है लेकिन परशुराम के श्राप के चलते ही वो सब भूल जाते है. युध्य के दौरान कर्ण का रथ मिटटी में धंस जाता है जिसे निकलने वे अपना धनुष नीचे रख देते है. ये सब कृष्ण की चाल होती है. इसी बीच अर्जुन उन पर वान चला देता है. अर्जुन अपने बेटे अभिमन्यु की मौत का बदला कर्ण से लेते है.

तभी कुंती की सेवा भाव से प्रसन होकर दुर्वासा ऋषि ने कुंती को एक वरदान दिया की किसी भी देवता के स्मरण करने से संतान की प्राप्ति हो सकती है

सारथी अधिरथ द्वार कर्ण को पुत्र रूप में पालना :

महाभारत का युद्ध चल रहा था। सूर्यास्त के बाद सभी अपने-अपने शिविरों में थे। उस दिन अर्जुन कर्ण को पराजित कर अहंकार में चूर थे। वह अपनी वीरता की डींगें हाँकते हुए कर्ण का तिरस्कार करने लगे। यह देखकर श्रीकृष्ण बोले-'पार्थ! कर्ण सूर्यपुत्र है। उसके कवच और कुण्डल दान में प्राप्त करने के बाद ही तुम विजय पा सके हो अन्यथा उसे पराजित करना किसी के वश में नहीं था। वीर होने के साथ ही वह दानवीर भी हैं। ' कर्ण की दानवीरता की बात सुनकर अर्जुन तर्क देकर उसकी उपेक्षा करने लगा। श्रीकृष्ण अर्जुन की मनोदशा समझ गए। वे शांत स्वर में बोले-'पार्थ!

वेद क्या है ? इनकी रचना किसने की ? वेद कितने है ?

अंगराज कर्ण के करनाल में और मेरठ में मंदिर हैं। उनके नाम से read more करनाल शहर में कर्ण लेक है उनकी दानवीरता का सबसे बड़ा प्रमाण है और इसे कोई नही मिटा सकता। जब तक संसार और यह पृथ्वी रहेगी तब तक उनका नाम अमर रहेगा कुन्ती और कर्ण[संपादित करें]

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कर्ण की शक्ति से भगवान श्रीकृष्ण भी परिचित थे. कर्ण के सामने एक बार देवराज इंद्र को भी लज्जित होना पड़ा था. जिसकी कथा बहुत ही रोचक है.

इस प्रसंग में महत्वपूर्ण बात यह थी कि महाबली कर्ण को यह बात पहले ही उनके पिता भगवान सूर्य से पता चल चुकी थी कि भगवान इंद्र अपने पुत्र अर्जुन के प्राणों के मोह वश उनसे इस प्रकार छल पूर्वक कवच और कुंडल का दान मांगने आएंगे और भगवान सूर्य ने अपने पुत्र कर्ण को अपने पुत्र मोह के कारण उन्हें ये दान देने से मना किया. परन्तु कर्ण ने इस प्रकार याचक को खाली हाथ लौटाने से मना कर दिया और अपने कवच और कुंडल सब कुछ जानते हुए भी ख़ुशी से दान कर दिए.

कोणार्क सूर्य मंदिर, अद्भुत शिल्पकारी का नमूना

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इस दिन महाभारत का सबसे खतरनाक युद्ध हुआ जिसने कर्ण की मुत्यु हुई थी

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