Not known Details About सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य
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कर्ण के जन्म से प्राप्त कवच कुंडल के कारण उसकी युद्ध में शारीरिक क्षति होना असम्भव था.
पुरुषार्थ क्या है अर्थ, महत्व व प्रकार
अब सुदर बालक देखकर तनिक उल्लास के बाद लोक लाज के भय से कुंती चिंतित हो गई. अतः उसने उस बालक को एक सन्दुक में रख गंगा जी में बहा दिया.
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इस प्रकार, कर्ण को तीन पृथक अवसरों पर तीन श्राप मिले। दुर्भाग्य से ये तीनों ही श्राप कुरुक्षेत्र के निर्णायक युद्ध में फलीभूत हुए, जब वह युद्ध में अस्त्र विहीन, रथ विहीन और असहाय हो गया था। विविध श्रापों के प्रभाव[संपादित करें]
९. महाराज और कर्ण के सारथी पाण्डवों के मामा शल्य, जिन्होंने सत्रहवें दिन के युद्ध में अर्जुन की युद्ध कला की प्रशंसा करके कर्ण का मनोबल गिरा दिया।
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कर्ण और दुर्योधन प्रारम्भ से ही मित्र थे। कर्ण ने दुर्योधन के लिए सफलतापूर्वक अश्वमेध यज्ञ भी किया था। जिस समय द्रौपदी के स्वयंवर के लिए राजागण द्रुपद के यहाँ एकत्र हुए थे। दुर्योधन ने कर्ण को इसके उपयुक्त सिद्ध करने के लिए कलिंग देश का अधिपति बनाया था। द्रुपद के यहाँ अर्जुन के have a peek at this web-site पूर्व कर्ण ने मत्स्यवेध किया था परन्तु द्रौपदी ने कर्ण के साथ विवाह करना अस्वीकार कर दिया। फलत: कर्ण ने अपने को विशेष रूप से अपमानित समझा। कर्ण और उसका परिवार
पृष्ठ जिनमें अमान्य प्राचलों के साथ उद्धरण हैं
कर्ण की शक्ति से भगवान श्रीकृष्ण भी परिचित थे. कर्ण के सामने एक बार देवराज इंद्र को भी लज्जित होना पड़ा था. जिसकी कथा बहुत ही रोचक है.
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महाभारत काल में वे कर्ण नाम से प्रसिद्ध हुए, जिसका अर्थ हैं – अपनी स्वयं की देह अथवा कवच को भेदने वाला.
महाभारत के अद्भुत यौद्धा कर्ण को कई नामों से जानते है जैसे वासुसेन,दानवीरकर्ण, राधेय, सूर्यपुत्र, सूतपुत्र , कौंत्य , विजयधारी , वैकर्तना, मृत्युंजय , दिग्विजयी, अंगराज आदि.
पुराणों, विशेषतः विष्णु पुराण, वाल्मीकि रचित रामायण और व्यास रचित महाभारत सभी में इस वंश का विवरण मिलता है।